माध्यस्थम करार (Contract of Indemnity/Guarantee? — यहाँ “माध्यस्थम” शब्द का सामान्यतः अर्थ mediation या agency/ intermediary होता है) — प्रमाणित संदर्भ के अनुसार यदि प्रश्न का आशय “माध्यस्थम करार” से मध्यस्थता करार (Contract of Mediation/Arbitration?) है तो इसे मध्यस्थता समझा जा सकता है। परन्तु भारत में विधि-विषयक दृष्टि से अक्सर “माध्यस्थम” से आशय “मध्यस्थ” (agent/ mediator) या “मध्यस्थता” (mediation) से लिया जाता है।
माध्यस्थम करार — परिभाषा
माध्यस्थम करार से आशय उस लिखित अथवा मौखिक समझौते से है जिसमें एक पक्ष (या दोनों पक्षों) किसी विवाद, हित-संघर्ष या व्यापारिक लेनदेन में तीसरे पक्ष (मध्यस्थ) को विवाद सुलझाने, बातचीत कराने अथवा समझौता कराने के लिए नियुक्त करता है। मध्यस्थ एक तटस्थ पक्ष होता है जो पारस्परिक वार्ता को सुविधाजनक बनाता है; वह निर्णय लेने वाला पारितोषक (adjudicator) नहीं बनता जब तक कि पक्ष किसी बाइंडिंग आर्बिट्रेशन को स्वीकार न करें।
माध्यस्थम करार के उद्देश्य
– विवादों का सुरक्षित, शीघ्र और आर्थिक समाधान कराना।
– अदालतों पर दबाव कम करना तथा सम्वैधानिक दावों की लंबी प्रक्रिया से बचना।
– पक्षों के बीच संचार और भरोसे को बहाल कर वैकल्पिक विवाद निवारण उपलब्ध कराना।
माध्यस्थम करार के आवश्यक तत्व (Elements)
1. पक्षों की स्पष्ट पहचान
– करार में सभी पक्षों (पक्षकार) की स्पष्ट पहचान होनी चाहिए — प्रतिनिधित्व, क्षमता (legal capacity), पते और पहचान।
2. वैध उद्देश्य (Lawful object)
– करार का उद्देश्य वैध और वैधानिक होना चाहिए; अवैध गतिविधियों हेतु किया गया मध्यस्थ करार अमान्य होगा।
3. सहमति (Free consent)
– करार में पक्षों की सहमति स्वतंत्र, दबाव/प्रलोभन/भ्रम से रहित होनी चाहिए। गलत प्रस्तुति (misrepresentation), धोखाधड़ी या अनुचित प्रभाव से प्राप्त सहमति करार को अवैध कर सकती है।
4. मध्यस्थ की नियुक्ति तथा कर्तव्यों का निर्धारण
– करार में मध्यस्थ की नियुक्ति स्पष्ट रूप से लिखी हो — मध्यस्थ कौन है, उसकी भूमिका (facilitator/neutral), उसकी शक्तियाँ और सीमाएँ, गोपनीयता (confidentiality) का दायरा तथा गोपनीय सूचना का व्यवहार।
– मध्यस्थ द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाएँ (जैसे, पूर्व बैठक, सम्मिलित सेशन, पेशेवर आचार संहिता) का वर्णन आवश्यक है।
5. प्रक्रिया और समय-सीमा
– मध्यस्थता सत्रों की संख्या, स्थान, भाषा, समय-सीमा और चरणबद्ध प्रक्रिया का उल्लेख हो। यह पक्षों को स्पष्टता देता है और बाद के विवादों को रोकता है।
6. पारिश्रमिक और खर्चों का प्रावधान
– मध्यस्थ के शुल्क (fee), भुगतान का समय, और सत्र/स्थान/रिपोर्टिंग से जुड़े खर्चों का विभाजन स्पष्ट हो।
7. गोपनीयता (Confidentiality clause)
– मध्यस्थता में प्रायः गोपनीयता अनिवार्य मानी जाती है; करार में यह क्लॉज़ शामिल होना चाहिए कि मध्यस्थता के दौरान प्राप्त सूचना सार्वजनिक या न्यायालय में उपयोग न की जाएं (कुछ सीमाओं के साथ)।
8. बाध्यता (Nature of settlement) — non-binding vs binding
– करार में स्पष्ट किया जाना चाहिए कि मध्यस्थता केवल समझौता-निमित्त है (non-binding facilitation) या मध्यस्थ की अनुशंसा बाइंडिंग होगी; या कि यदि समझौता हुआ तो वह लिखित सौदे के रूप में लागू होगा।
– यदि न्यायिक मान्यता चाही जाती है तो समझौते को लागू करने के उपाय/फोर्स (e.g., consent award, settlement deed) का प्रावधान होना चाहिए।
9. विवाद समाधान की अन्य विधियाँ और पर्यायवाची प्रावधान
– यदि मध्यस्थता विफल रहती है तो अगला कदम क्या होगा — पुनर्विचार, मध्यस्थता का दोबारा प्रयास, अदालतों का अधिकार, आर्बिट्रेशन का सहमति, आदि।
10. कानूनी अनुपालन और लागू कानून (Governing law & jurisdiction)
– करार में यह निर्धारित किया जाना चाहिए कि करार पर कौन सा कानून लागू होगा और यदि न्यायालय में मामला उठता है तो किस न्यायाधिकरण (jurisdiction) का प्रावधान लागू होगा।
11. समाप्ति और रद्द करने की शर्तें
– करार किस स्थिति में समाप्त होगा, मध्यस्थ के निष्कासन की शर्तें, पक्षों द्वारा रद्द करने का प्रावधान आदि स्पष्ट होने चाहिए।
12. दस्तावेजीकरण और हस्ताक्षर/नोटरीकरण
– लिखित करार पर पक्षों और मध्यस्थ के हस्ताक्षर तथा आवश्यक होने पर गवाह/नोटरी प्रमाणीकरण का वर्णन होना चाहिए।
संक्षेप / निष्कर्ष
माध्यस्थम करार एक वैकल्पिक, आर्थिक और गुप्तता-सक्षम विवाद निवारण साधन है, जो पक्षों को न्यायिक व्यय और समय बचाते हुए समझौता करने का अवसर देता है। एक प्रभावी मध्यस्थ करार के लिए पक्षों की स्पष्ट सहमति, मध्यस्थ की शक्तियों एवं दायित्वों, गोपनीयता, शुल्क संरचना, प्रक्रिया और लागू कानून जैसे तत्व आवश्यक हैं।