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माध्यस्थम तथा सुलह अधिनियम, 1996 — मुख्य उद्देश्य 

Posted on November 25, 2025November 25, 2025 by KRANTI KISHORE

परिचय

माध्यस्थम तथा सुलह अधिनियम, 1996 (The Arbitration and Conciliation Act, 1996) भारत में वैकल्पिक विवाद निपटान (Alternative Dispute Resolution — ADR) को व्यवस्थित करने हेतु पारित प्रमुख कानून है। यह अधिनियम 1996 में लागू हुआ और इसका उद्देश्य मध्यस्थता (arbitration) तथा सुलह/समझौता (conciliation) की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित, आधुनिक और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना था। 

मुख्य उद्देश्य

1. न्यायिक हस्तक्षेप को सीमित करना

– अधिनियम का एक प्रमुख उद्देश्य मध्यस्थता प्रक्रियाओं में अदालतों का अनावश्यक हस्तक्षेप कम करना है ताकि मध्यस्थता स्वतंत्र और त्वरित ढंग से सम्पन्न हो सके। केवल सीमित परिस्थितियों में न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति दी गई है (उदा. अनुबंध की वैधता, मध्यस्थता समझौते की उपस्थिति आदि)।

2. मध्यस्थता और सुलह के लिए स्वतंत्र और तटस्थ माहौल सुनिश्चित करना

– पक्षों की स्वेच्छा पर आधारित प्रक्रियाओं को मान्यता दे कर यह अधिनियम तटस्थ, स्वतंत्र और गोपनीय विवाद निपटान सुनिश्चित करता है। मध्यस्थों की नियुक्ति, उनकी योग्यता और निष्पक्षता के मानदण्ड दिये गए हैं।

3. मध्यस्थता के निर्णयों की स्वीकृति और प्रवर्तन (enforcement)

– अधिनियम का उद्देश्य मध्यस्थता पुरस्कारों (arbitral awards) को बाध्यकारी और न्यायिक रूप से प्रवर्तनीय बनाना है। इस दिशा में देश के भीतर और विदेशी मध्यस्थता पुरस्कारों के मान्यता-प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया गया है ताकि पुरस्कारों का प्रवर्तन आसान हो।

4. जल्दी और कुशल विवाद निपटान

– पारंपरिक न्यायिक प्रक्रिया की तुलना में मध्यस्थता/सुलह को शीघ्र और लागत-प्रभावी उपाय माना गया है। अधिनियम में समयसीमा, प्रक्रिया के लचीलेपन और परिणामों की निश्चितता पर जोर है जिससे विवाद शीघ्र सुलझ सकें।

5. अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप व्यवस्था लाना

– 1996 का अधिनियम UNCITRAL (United Nations Commission on International Trade Law) के मॉडल कानूनों और अंतरराष्ट्रीय व्यवहारों (जैसे न्यूयॉर्क कन्वेंशन) के अनुरूप बनाया गया है। इससे भारत में अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता को बढ़ावा मिला और विदेशी पुरस्कारों के मान्यता-प्रवर्तन में सहजता आयी।

6. सुलह (conciliation) को वैधानिक स्थान प्रदान करना

– अधिनियम ने केवल मध्यस्थता ही नहीं, सुलह/समझौता प्रक्रिया को भी स्पष्ट विधिक मान्यता दी। सुलह के नियम, सुलहकर्ता की भूमिका, गोपनीयता और समझौते की प्रवर्तनीयता पर प्रावधान हैं ताकि विवाद के समाधान के वैकल्पिक और सौहार्दपूर्ण तरीके को प्रोत्साहन मिल सके।

7. पक्षों की स्वतंत्रता और प्रक्रिया में लचीलापन

– अधिनियम स्पष्ट करता है कि मध्यस्थता की प्रक्रिया में पक्षों की सहमति सर्वोपरि है — वे नियम, भाषा, स्थान और मध्यस्थ की नियुक्ति आदि का चयन कर सकते हैं। यह लचीलापन विवाद समाधान को अधिक उपयुक्त बनाता है।

8. निष्पक्ष प्रक्रिया और पारदर्शिता

– मध्यस्थता की गतिविधियों में निष्पक्षता, पारदर्शिता और पक्षों के सुनने के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए आदर्श प्रक्रियात्मक दिशानिर्देश दिए गए हैं। मध्यस्थों के पक्षपात, हित-संकट और उनकी जवाबदेही के लिए प्रावधान समाहित हैं।

निष्कर्ष 

माध्यस्थम तथा सुलह अधिनियम, 1996 का मूल उद्देश्य अदालतों पर बोझ कम कर वैकल्पिक, त्वरित, लागत-प्रभावी और अंतरराष्ट्रीय रूप से स्वीकार्य विवाद निपटान व्यवस्था स्थापित करना है। यह अधिनियम मध्यस्थता और सुलह दोनों के लिए कानूनी ढाँचा, पक्षों की स्वतंत्रता, पुरस्कारों के प्रवर्तन और न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाएँ निर्धारित करता है। 

ADR, माध्यस्थम तथा सुलह अधिनियम, माध्यस्थम तथा सुलह अधिनियम 1996- मुख्य उद्देश्य

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