प्रस्तावना
किसी भी देश में न्यायालय व्यवस्था का उद्देश्य निष्पक्ष, त्वरित और सुसंगत न्याय प्रदान करना है। भारतीय प्रक्रिया दंड संहिता व सिविल प्रक्रिया व प्रशासनिक विधियों में मध्यस्थता (mediation/conciliation) और पंचायती व्यवस्था जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution — ADR) के प्रावधानों का महत्त्व बढ़ा है।
1. मध्यस्थम-पंचाट (Mediation/Conciliation/Gram Panchayat adjudication) — अवधारणा और प्रकार
– मध्यस्थता (Mediation) और सामाधान/समझौता-समिति (Conciliation) नागरिक और वैकल्पिक विवाद समाधान के रूप हैं जिनमें तटस्थ पक्ष (मध्यस्थ/सुलहकर्ता) पक्षकारों के बीच वार्तालाप कराकर सहयोगपूर्ण समझौते पर पहुँचने में मदद करता है। यह न्यायिक प्रक्रिया का विकल्प है और अक्सर संवैधानिक, अनुबंधिक एवं पारिवारिक मामलों में प्रयुक्त होता है।
– ग्राम पंचायत एवं पंचायती संस्थाएँ (Gram Panchayat/ Nyaya Panchayat) विशेषतः ग्रामीण विवाद निवारण के पारंपरिक संस्थान हैं; कुछ मामलों में पंचायत/मध्यस्थता संस्थाएँ मामला सुलझा कर प्रमाणित निर्णय (award/settlement) देती हैं। भारतीय संविधान एवं स्थानीय कानूनों में पंचायतों को स्वायत्तता दी गई है किंतु उनके निर्णयों पर औपचारिक अपील के प्रावधान विभिन्न क़ानूनों में भिन्न होते हैं।
2. क्या नियोक्ता/पंचाट के विरुद्ध अपील हो सकती है? — सामान्य सिद्धांत
– पारंपरिक रूप से, मध्यस्थता द्वारा हुए समझौते (settlement agreement) या पंचाट के निर्णय पर सिविल कोर्ट में चुनौती कम होती है यदि समझौता स्वयं वैध, स्वेच्छापूर्ण और कानूनी शर्तों के अनुरूप हो। मध्यस्थता समझौते को अदालतें अनुबंध की तरह मानती हैं और केवल सीमित आधारों पर उसे रद्द कर सकती हैं (जैसे जब समझौता ज़बरदस्ती, धोखे, धोखाधड़ी, प्रताड़ना या अवैध उद्देश्य पर आधारित हो)।
– Arbitration and Conciliation Act, 1996 के सन्दर्भ में आर्बिट्रेशन अवॉर्ड के विरुद्ध सीमित आधारों पर चुनौती (setting aside) की व्यवस्था है; पर यह उस प्रकार की मध्यस्थता पर लागू होगा जो आर्बिट्रेशन परिभाषा में आती है। यदि मामला आर्बिट्रेटर/मध्यस्थ के अन्तर्गत आया है और अधिनियम के दायरे में है, तो अपील की जगह award को setting aside के लिए उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में याचिका संभव है; वही अन्तर्विरोध अलग-अलग कानूनों के तहत आते हैं।
– ग्राम पंचायत/पंचायती निर्णयों के विरुद्ध आप्रेक्टिकली अपील का प्रश्न संबंधित राज्य के पंचायती राज कानूनों, गांवों के मत्स्य नियमों तथा न्यायिक समीक्षा सिद्धांतों पर निर्भर करेगा। कई राज्यों में पंचायत के निर्णय को एक प्रथमकक्षापर्याय (first-appeal) या प्रत्यक्ष न्यायालय में चुनौती का प्रावधान देता है; अन्यत्र, पंचायती निर्णय निजी समझौता मानकर सिविल मुक़दमों के विषय बनते हैं।
3. कानूनी आधार — उपबंधों (ज्यूरिडिक्शनल व प्रक्रिया संबंधी धाराएँ)
– आर्बिट्रेशन/मध्यस्थता अधिनियम के प्रावधान: Arbitration and Conciliation Act में award की वैधता, award को set aside करने के आधार (Section 34) और enforcement (Section 36) के नियम दिए गए हैं। यदि मध्यस्थता इन प्रावधानों के अन्तर्गत है, तो प्रत्यक्ष “अपील” का हक सीमित रहता है—कुल मिलाकर challenge के लिए application procedure होता है न कि साधारण अपील।
– सिविल प्रक्रिया (CPC) के अंतर्गत मुकदमों में पंचायती समझौते: CPC की धारा 89 पंचायत/समझौता के माध्यम से मामलों का निपटारा सुझाती है; समझौता होने पर सुलहनामा (compromise decree) पारित होता है—उसके विरुद्ध सामान्य अपील व अदालती प्रक्रिया लागू होती है यदि वैधानिक शर्तें पूरी न हों।
– लोकल/राज्य कानून: कई राज्यों ने पंचायती राज कानूनों में पंचायत निर्णयों के लिये अपीलीय व्यवस्था रखी है। उदाहरण: कुछ राज्यों में पंचायत के निर्णयों के विरुद्ध उप-न्यायालय/मण्डल स्तर के न्यायाधिकरण में अपील संभव है। अतः प्रश्न के उत्तर में स्थानीय उपबंधों की जाँच आवश्यक है।
4. न्यायिक समीक्षा बनाम अपील — मतभेद और उपयोगिता
– अपील (Appeal): सामान्यतः तथ्यों/न्यायिक निष्कर्षों पर पुनर्विचार का साधन होता है—उच्च न्यायालय निचली अदालत के निर्णय को पुष्टि, बदल या रद्द कर देता है। यदि पंचाट के निर्णय को विधिक रूप से ‘न्यायालयीय निर्णय’ नहीं माना जाता, तो परंपरागत अपील का मार्ग सीधे उपलब्ध नहीं होगा।
– न्यायिक समीक्षा (Judicial Review / Writ): यदि पंचाट/मध्यस्थता संस्था प्रशासनिक कार्य कर रही है या संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थना पत्र (writ petition—Article 226/32) के माध्यम से समाधान मिल सकता है। यह मार्ग विशेषकर जहाँ अधिकार उल्लंघन, प्रक्रियात्मक अन्याय या सांविधिक अधिकारों का प्रश्न हो, प्रभावी है।
– सेट-आसान (Setting aside) बनाम अपील: आर्बिट्रल award का setting aside अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं जैसा सीमित उपचार देता है; वहीं न्यायालय में पारंपरिक अपील प्रक्रिया से तथ्यात्मक पुनरिक्षेप संभव होता है — अतः किस मार्ग का प्रयोग होगा यह नियंत्रणकारी कानून और निर्णय के स्वरूप पर निर्भर है।