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न्यूयार्क अभिसमय पंचाट

Posted on November 26, 2025November 26, 2025 by KRANTI KISHORE

न्यूयार्क अभिसमय पंचाट (New York Convention on the Recognition and Enforcement of Foreign Arbitral Awards, 1958) के अंतर्गत कब और किन परिस्थितियों में एक विदेशी पंचाट (arbitral award) के प्रवर्तन (enforcement) से इंकार किया जा सकता है ।

परिचय

– न्यूयार्क अभिसमय पंचाट (1958) का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों में पंचाट के पुरस्कारों की मान्यता और प्रवर्तन को सरल और अधिक पूर्वानुमान्य बनाना है। 

– Convention ने सदस्‍य-राज्य के समवर्ती राष्ट्रीय कानूनों में सीमाएँ निर्धारित की हैं: एक देश अपने क्षेत्र में विदेशी पंचाट पुरस्कार के प्रवर्तन से केवल सीमित स्थितियों में इंकार कर सकता है। 

– अनुच्छेद V (Article V) में उन विशेष कारणों का उल्लेख है जिनके आधार पर प्रवर्तन से इंकार या स्थगन (refusal or deferral) किया जा सकता है। नीचे अनुच्छेद V के प्रावधानों को क्रमबद्ध रूप से समझाया गया है और प्रासंगिक न्यायिक विवेचना सहित उत्तर दिया गया है।

अनुच्छेद V के तहत प्रवर्तन से इंकार के वैध कारण (Grounds for Refusal)

Article V(1) — न्यायसंगत अधिभोग, संविदात्मक वैधता और पारदर्शिता संबंधी कारण

1. समझौते की मौजूदगी या वैधता का अभाव (Article V(1)(a))

   – यदि यह सिद्ध हो कि पंचाट का अनुबन्ध (arbitration agreement) मौजूद नहीं था या वह अमान्य था, राज्य प्रवर्तन से इंकार कर सकता है। 

   – उदाहरण: अनुबंध पर हस्ताक्षर विवाद, क्षमता का अभाव (minor, mental incapacity) या अनुबंध में अशुद्धि।

   – नोट: यह चुनौती असल में विवाद का एक आधारभूत मुद्दा है; न्यायालयों को सावधानी बरतनी चाहिए कि वे केवल औपचारिक परीक्षण कर रहे हैं, न कि पूरी तरह से पंचाट के निर्णय की समीक्षा कर रहे हों (s. e. narrowly construed).

2. उचित प्रक्रिया/न्यायसंगत सुनवाई का अभाव (Article V(1)(b))

   – यदि किसी पक्ष को अपने मामले को प्रस्तुत करने का अवसर नहीं दिया गया था या पंचाट ने नियमों/समझौते का उल्लंघन किया, तो प्रवर्तन से इंकार हो सकता है। 

   – उदाहरण: नोटिस न दिया जाना, आकलन के अवसर का इंकार, पंचाट का पक्षपाती आचरण या नियमों का उल्लंघन जिससे निष्पक्ष सुनवाई प्रभावित हुई।

   – न्यायिक दृष्टांत: यह ground due process principles पर आधारित है और इसे गंभीर उल्लंघनों पर लागू किया जाता है।

3. पंचाट का दायरा समझौते से हटकर होना (Article V(1)(c))

   – यदि पुरस्कार उस विवाद पर दिया गया हो जो पंचाट के अधिकार-क्षेत्र (scope) के बाहर आता है, प्रवर्तन अस्वीकार किया जा सकता है। 

   – परंतु प्रायः न्यायालयें इस ground का सीमित अर्थ देती हैं: यदि मुख्य विवाद पंचाट के दायरे में है और पुरस्कार में कुछ मामूली अनुमापन शामिल है, तो सामान्यतः पुरस्कार मान्य रहता है। 

   – उदाहरण: अनुबंध में कुछ मुद्दे पंचाट के लिए निर्धारित थे, पर पुरस्कार ने उन विषयों पर निर्णय दिया जो स्पष्ट रूप से समझौते के बाहर हों।

Article V(2) — सार्वजनिक नीति और निष्पादन का मामला

4. सार्वजनिक नीति (public policy) का उल्लंघन (Article V(2)(b))

   – यदि पुरस्कार लागू करने पर उस देश की सार्वजनिक नीति का उल्लंघन होता है, तो प्रवर्तन से इंकार संभव है। 

   – सार्वजनिक नीति की व्याख्या व्यापक नहीं बल्कि सीमित और स्पष्ट स्थितियों में होनी चाहिए — जैसे कि भ्रष्टाचार, अपराध से संबंधित मुद्दे, संवैधानिक मूल्यों का हनन आदि।

   – भारतीय परिप्रेक्ष्य: सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक नीति के अर्थ को सीमित करने का रुख अपनाया है (ONGC v. Saw Pipes & Others में सार्वजनिक नीति की व्याख्या) — केवल “fundamental policy of Indian law”, “basic notions of morality” या “justice” के टकराव पर लागू।

   – नवीन प्रवृत्ति: अनेक जुरिस्डिक्शनों में सार्वजनिक नीति का प्रयोग सीमित किया जा रहा है ताकि Convention के उद्देश्यों को बरकरार रखा जा सके।

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु और प्रक्रियात्मक पहलू

5. न्यायाधिकरण का गठन और स्वरूप (Article V(1)(a) के लागू पहलू)

   – अनुच्छेद V(1)(a) के तहत यह भी पूछा जा सकता है कि पंचाट का गठन वैध तरीके से हुआ था या नहीं (उदा. पंच निंदा/नियुक्ति की प्रक्रिया में त्रुटि)। यदि गठित नहीं हुआ था, पुरस्कार का पालन नहीं किया जाएगा।

6. प्रवर्तन से पहले न्यायालयी परीक्षण की सीमा

   – अंतरराष्ट्रीय प्रचलन यह है कि राष्ट्रीय न्यायालय Convention के grounds को संकुचित रूप में लागू करें और पुरस्कार की सामग्री की पुनर्समीक्षा न करें। उद्देश्य पंचाटों की finality और अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक निश्चय को सुनिश्चित करना है। 

   – न्यायालय सामान्यतः केवल procedural और jurisdictional challenges देखता है, निर्णायिकता (merits) की समीक्षा नहीं करता।

7. प्रमाण की भूमिका और बोझ

   – जिस पक्ष द्वारा प्रवर्तन से इंकार का दावा किया जाता है, उसपर साबित करने का बोझ होता है। न्यायालय ऐतिहासिक तथ्यों, दस्तावेज़ों और पंचाट की कार्यवाही के प्रमाणों के आधार पर निर्णय लेगा।

8. अनुच्छेद V(1)(b) और आचार-नियमों का विस्तृत अनुप्रयोग

   – उदाहरण: यदि पंचाट ने लागू प्रक्रिया-नियमों का उल्लंघन किया (उदा. नियमों के अनुसार साक्ष्य प्रस्तुत करने का समय न दिया गया), तो इसे अनुच्छेद V(1)(b) के अंतर्गत देखा जा सकता है।

   – परंतु न केवल तकनीकी नियमों का उल्लंघन, बल्कि उस उल्लंघन का material प्रभाव भी प्रदर्शित होना चाहिए — जैसे कि पक्ष के मूलभूत अधिकार प्रभावित हुए हों।

न्यूयॉर्क कांवेशन के सिद्धांतों के साथ भारतीय प्रावधान (भारतीय संदर्भ)

– भारत में विदेशी पुरस्कारों के प्रवर्तन की प्रक्रिया भारतीय विधि (The Arbitration and Conciliation Act, 1996, Section 48) में अनुच्छेद V के अनुरूप है। धारा 48 में विशेष कारणों का जिक्र है जिनके आधार पर भारतीय अदालतें प्रवर्तन से इंकार कर सकती हैं — ये कारण Convention के grounds के अनुरूप हैं। 

– भारतीय न्यायालयों ने समय-समय पर सार्वजनिक नीति तथा अनुबंध की संवैधानिक वैधता के सम्बन्ध में मार्गदर्शन दिया है (उदाहरण: Renusagar Power Co. Ltd. v. General Electric Co., ONGC v. Saw Pipes आदि)। इन निर्णयों ने दिखाया है कि:

  – सार्वजनिक नीति का अर्थ संकुचित है और केवल अत्यंत गंभीर मामलों में प्रवर्तन रोका जाना चाहिए।

  – तकनीकी त्रुटियों के बावजूद पुरस्कार को खारिज करना उचित नहीं माना जाता अगर वे पक्ष के न्यायसंगत सुनवाई के अधिकार को प्रभावित न करती हों।

सारांश

– न्यूयॉर्क अभिसमय पंचाट के अंतर्गत प्रवर्तन से इंकार केवल सीमित परिस्थितियों में किया जा सकता है। मुख्य कारण Article V(1) और V(2) में सूचीबद्ध हैं:

  1. पंचाट समझौता अवैध/अस्तित्वहीन हो (Article V(1)(a)),

  2. पक्ष को अपने मामले को प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला या पंचाट ने उचित प्रक्रिया का उल्लंघन किया (Article V(1)(b)),

  3. पुरस्कार उस विवाद पर दिया गया जो पंचाट के अधिकार-क्षेत्र के बाहर था (Article V(1)(c)),

  4. पुरस्कार का प्रवर्तन देश की सार्वजनिक नीति के विरुद्ध हो (Article V(2)(b)),

  5. पुरस्कार के संबंध में अन्य प्रक्रियात्मक अड़चनें जो Convention के प्रावधानों में उल्लिखित हैं (Article V(1) व V(2) के अंतर्गत)।

– भारतीय संदर्भ में Section 48, Arbitration and Conciliation Act, 1996 इन grounds को लागू करता है और उच्चतम न्यायालय ने सार्वजनिक नीति की व्याख्या को संकुचित रखते हुए Convention के उद्देश्यों की पुष्टि की है।

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