संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी (Office of the United Nations High Commissioner for Refugees — UNHCR) विश्व के प्रवासी-मानवाधिकार संरचनाओं में एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य शरणार्थियों, बेघर हुए लोगों और निर्वासितों के संरक्षण और सहायता को सुनिश्चित करना है।
स्थापना का ऐतिहासिक संदर्भ
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप व दुनिया में विस्थापन की विशाल लहर ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष अपरिहार्य चुनौतियाँ प्रस्तुत कीं। इन परिस्थितियों में 1950 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उच्चायुक्त के पद (High Commissioner for Refugees) की स्थापना के लिए प्रस्ताव पारित किया। 1951 का शरणार्थी कंज़ेन्शन (Convention Relating to the Status of Refugees) और 1967 का प्रोटोकॉल (Protocol) UNHCR के कानूनी-नैतिक आधार बने। 1950 में स्थापित UNHCR को शुरू में अस्थायी एजेंसी के रूप में देखा गया था, पर जल्दी ही इसकी भूमिका स्थायी और वैश्विक मान्यताओं में बदल गई।
उद्देश्य और प्रमुख कर्तव्य
UNHCR के मुख्य उद्देश्य स्पष्ट और बहुपक्षीय हैं:
– शरणार्थियों के संरक्षण की व्यवस्था करना: किसी व्यक्ति को बिना भेदभाव के जीवन, स्वतंत्रता और सुरक्षा का संरक्षण प्रदान करना।
– निर्वासित और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए सहायता कार्यक्रम संचालित करना: भोजन, आवास, चिकित्सकीय सहायता, शिक्षा और पुनर्वास।
– निर्वासितों के पुनर्वास व पुनर्स्थापन में सहयोग: देश-स्तर पर पुनर्वास, बोझ-साझेदारी व प्रत्यर्पण/स्थायी समाधान (स्थानीय एकीकरण, अस्थायी संरक्षण, तृतीय देश में पुनर्वासन)।
– शरणार्थी अधिकारों की संवर्धना तथा कानून का प्रचार: शरणार्थी संधि के सिद्धांतों का प्रवर्तन व सदस्य-राष्ट्रों को तकनीकी सहायता प्रदान करना।
– डेटा संग्रह और स्थिति-विश्लेषण: प्रवासी-परिस्थितियों का निगरानी एवं रिपोर्टिंग, नीति निर्धारण में समर्थन।
कानूनी आधार और क्षेत्राधिकार
UNHCR का प्रमुख कानूनी आधार 1951 का शरणार्थी कंज़ेन्शन तथा 1967 का प्रोटोकॉल है। 1951 संधि की मूल परिकल्पना यूरोप के द्वितीय विश्व युद्ध के आपदाओं पर केन्द्रित थी; 1967 प्रोटोकॉल ने इसकी भौगोलिक और समय-सीमाओं को हटा कर इसे वैश्विक रूप दिया। संधि के प्रमुख सिद्धांतों में ‘non-refoulement’ (किसी भी शरणार्थी को ऐसे स्थान पर लौटाने से रोकना जहाँ उसका जीवन या स्वतंत्रता खतरे में हो) सर्वोपरि है।
UNHCR का क्षेत्राधिकार दो आयामों में देखा जा सकता है:
1. कानूनी/मैंडेटरी क्षेत्राधिकार: UNHCR का जनरल माण्डेट शरणार्थियों के संरक्षण और स्थायी हल ढूँढने तक सहायता प्रदान करना है। हालांकि UNHCR स्वयं किसी राज्य पर अधिकार-प्रयोगकारी संस्थान नहीं है; इसका प्रभाव सदस्य-राष्ट्रों के सहयोग, संधियों और अंतरराष्ट्रीय दबाव के माध्यम से होता है।
2. व्यावहारिक/ऑपरेशनल क्षेत्राधिकार: संकट वाले देशों में राहत कार्य, पंजीकरण, कैम्प प्रबंधन, शरणार्थी हक़-हक़ूक़ के समर्थन, और पुनर्वास/स्थायी समाधान हेतु कार्यक्रम चलाना। UNHCR को अक्सर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या महासभा के निर्णयों, अथवा उच्चायुक्त के वार्षिक कार्यक्रमों के ज़रिये वित्तीय संसाधन और संचालन का दायित्व मिलता है।
सीमाएँ और चुनौतियाँ
UNHCR के सामने कुछ स्पष्ट सीमाएँ और चुनौतियाँ हैं:
– सार्वभौमिक अनुशासन की कमी: UNHCR के पास प्रवर्तनकारी शक्तियाँ नहीं; यह राज्यों के सहयोग पर निर्भर है।
– संसाधन-संकुलता: बढ़ती वैश्विक विस्थापन घटनाओं के बावजूद फंडिंग अक्सर अपर्याप्त रहती है।
– राजनीतिक जटिलताएँ: देशगत हित, सुरक्षा चिंताएँ और शरणार्थी स्वीकृति की नीति UNHCR के प्रयासों को प्रभावित करती हैं।
– नये संकट और विविध प्रवासी श्रेणियाँ: आन्तरिक रूप से विस्थापित (IDPs), पर्यावरणीय विस्थापन और शरणार्थी परिभाषा में विस्तार से निपटना ज़रूरी है।
निष्कर्ष
UNHCR की स्थापना और उसकी भूमिका वैश्विक मानवीय सुरक्षा में केंद्रीय है। इसका कानूनी माण्डेट और ऑपरेशनल उपस्थिति शरणार्थियों के संरक्षण एवं स्थायी हल खोजने में अनिवार्य है, पर इसकी प्रभावशीलता बड़े पैमाने पर सदस्य-राष्ट्रों के सहयोग, फंडिंग और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। बढ़ते विस्थापन के युग में UNHCR का निरंतर सुदृढ़ीकरण, व्यापक अंतरराष्ट्रीय भागीदारी और समेकित नीतिगत प्रतिक्रिया अनिवार्य है ताकि मानवाधिकारों और अखंडता की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।