ADB/ एशियाई विकास बैंक क्या है?
परिचय: ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
ADB सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये ऋण, तकनीकी सहायता, अनुदान एवं इक्विटी निवेश प्रदान करके अपने सदस्यों तथा भागीदारों की सहायता करता है।
मुख्यालय: मनीला, फिलीपींस
ADB और भारत: भारत ADB का संस्थापक सदस्य और बैंक का चौथा सबसे बड़ा शेयरधारक है।
ADB की रणनीति 2030 और देश की साझेदारी रणनीति, 2023-2027 के अनुरूप मज़बूत, जलवायु लचीले एवं समावेशी विकास के लिये भारत की प्राथमिकताओं का समर्थन करता है।
एशियाई विकास बैंक की स्थापना 19 दिसंबर, 1966 को एशिया में आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। इसका मुख्यालय फिलीपींस के मनीला शहर में स्थित है।
ADB की स्थापना क्यों हुई?
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एशिया के कई देश गरीबी, बुनियादी ढांचे की कमी और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे थे। इसी परिप्रेक्ष्य में, इन देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए एक संस्थान की आवश्यकता महसूस हुई, जो उन्हें अपने विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सके।
ADB के सदस्य देश:
ADB में वर्तमान में 68 सदस्य देश हैं, जिनमें से 49 एशिया और प्रशांत क्षेत्र से हैं और 19 सदस्य अन्य क्षेत्रों से हैं। भारत, ADB के संस्थापक सदस्यों में से एक है।
ADB के उद्देश्य:
ADB के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- गरीबी उन्मूलन: एशिया और प्रशांत क्षेत्र में गरीबी को कम करना।
- सतत विकास: पर्यावरण की सुरक्षा और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देते हुए आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना।
- समावेशी विकास: यह सुनिश्चित करना कि विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे।
- सुशासन: शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता को बढ़ावा देना।
ADB क्या करता है?
ADB अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई प्रकार के काम करता है, जिनमें शामिल हैं:
- ऋण प्रदान करना: विकासशील सदस्य देशों को विभिन्न परियोजनाओं के लिए रियायती दरों पर ऋण प्रदान करना।
- तकनीकी सहायता: विकास परियोजनाओं की योजना, डिजाइन और कार्यान्वयन में सदस्य देशों को विशेषज्ञता और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
- इक्विटी निवेश: निजी क्षेत्र की कंपनियों में निवेश करना जो विकास को बढ़ावा देती हैं।
- अनुदान: विकासशील देशों में महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक परियोजनाओं के लिए अनुदान प्रदान करना।
ADB किन क्षेत्रों में निवेश करता है?
ADB मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में निवेश करता है:
- बुनियादी ढांचा (सड़कें, पुल, बिजली संयंत्र, आदि)
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- कृषि और ग्रामीण विकास
- पर्यावरण संरक्षण
- शहरी विकास
- वित्तीय क्षेत्र विकास
ADB की वित्तपोषण संरचना:
ADB अपनी पूंजी सदस्यों के योगदान और ऋणों से जुटाता है। यह अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों में भी उधार लेता है।
निष्कर्ष:
एशियाई विकास बैंक एशिया और प्रशांत क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह गरीबी उन्मूलन, सतत विकास और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। यह ऋण, तकनीकी सहायता, इक्विटी निवेश और अनुदान के माध्यम से सदस्य देशों को उनकी विकास योजनाओं में मदद करता है।
इच्छामृत्यु
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बुजुर्ग दंपत्ति की उस याचिका को अस्वीकार कर दिया जिसमें उन्होंने अपने कोमाटोज (गंभीर रूप से अचेत) पुत्र, जो गिरने के कारण 11 वर्षों से बिस्तर पर है, के लिये “निष्क्रिय इच्छामृत्यु” (Passive Euthanasia) की मांग की थी।
- इस निर्णय ने भारत में इच्छामृत्यु के कानूनी और नैतिक आयामों पर चर्चा को पुनः शुरू कर दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- सर्वोच्च न्यायालय ने रोगी के माता-पिता की याचिका के विरुद्ध निर्णय सुनाते हुए कहा कि यह मामला निष्क्रिय इच्छामृत्यु के दायरे में नहीं आता क्योंकि मरीज किसी भी जीवन रक्षक प्रणाली पर नहीं है और उसे फीडिंग ट्यूब के जरिये पोषण प्राप्त हो रहा है।
- न्यायालय ने कहा कि उसके जीवन को समाप्त करने की अनुमति देना निष्क्रिय इच्छामृत्यु नहीं बल्कि सक्रिय इच्छामृत्यु होगी जो भारत में अवैध है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) क्या है?
- इच्छामृत्यु :
- इच्छामृत्यु, रोगी की पीड़ा को सीमित करने के लिये उसके जीवन को समाप्त करने की प्रथा है।
- इच्छामृत्यु के प्रकार:
- सक्रिय इच्छामृत्यु (Active euthanasia):
- सक्रिय इच्छामृत्यु तब होती है जब चिकित्सा पेशेवर या कोई अन्य व्यक्ति जानबूझकर ऐसा कुछ करता है जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है, जैसे घातक इंजेक्शन देना।
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia):
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु चिकित्सा उपचार को रोकने या वापस लेने का कार्य है, जैसे कि किसी व्यक्ति को मरने की अनुमति देने के उद्देश्य से जीवन समर्थक उपकरणों को बंद कर देना या वापस लेना है।
- सक्रिय इच्छामृत्यु (Active euthanasia):
- भारत में इच्छामृत्यु:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018) में एक ऐतिहासिक निर्णय में एक व्यक्ति के सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा कि एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विकल्प चुन सकता है और चिकित्सा उपचार से इनकार हेतु लिविंग विल निष्पादित कर सकता है।
- इसने असाध्य रूप से बीमार रोगियों द्वारा बनाई गई ‘लिविंग विल’ के लिये भी दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिन्हें पहले से ही पता होता है कि उनके स्थायी रूप से निश्चेत अवस्था में चले जाने की संभावना है।
- इससे पहले वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणा शानबाग मामले में पहली बार निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता दी थी।
- न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि “मृत्यु की प्रक्रिया में गरिमा, अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है। किसी व्यक्ति को जीवन के अंत में गरिमा से वंचित करना व्यक्ति को एक सार्थक अस्तित्व से वंचित करना है।”
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018) में एक ऐतिहासिक निर्णय में एक व्यक्ति के सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा कि एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विकल्प चुन सकता है और चिकित्सा उपचार से इनकार हेतु लिविंग विल निष्पादित कर सकता है।
- इच्छामृत्यु वाले विभिन्न देश:
- नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग, बेल्जियम किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो “असहनीय पीड़ा” का सामना करता है और जिसके स्वास्थ्य में सुधार की कोई संभावना नहीं है, को इच्छामृत्यु एवं सहायता प्राप्त आत्महत्या दोनों की अनुमति देते हैं।
- स्विट्ज़रलैंड में इच्छामृत्यु प्रतिबंधित है लेकिन किसी डॉक्टर या चिकित्सीय पेशेवर की उपस्थिति तथा सहायता से मृत्यु प्राप्त करने की अनुमति है।
- वर्ष 1942 से, स्विट्ज़रलैंड ने सहायता प्राप्त आत्महत्या की अनुमति दी है, जिसमें व्यक्तिगत पसंद और मरने की प्रक्रिया पर नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कानून के अनुसार व्यक्तियों का मस्तिष्क स्वस्थ होना चाहिये और उनका निर्णय स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों से प्रेरित नहीं होना चाहिये।
- ऑस्ट्रेलिया ने भी दोनों प्रकार की इच्छामृत्यु को वैध कर दिया है। यह उन वयस्कों पर लागू होता है जिनमें पूर्ण निर्णय लेने की क्षमता है तथा वे ऐसी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हैं जिनकी छह या बारह महीनों के भीतर मृत्यु होने की संभावना है।
- नीदरलैंड में इच्छामृत्यु के लिये एक सुस्थापित विधिक ढाँचा है, जिसे वर्ष 2001 के “अनुरोध पर जीवन की समाप्ति और सहायता प्राप्त आत्महत्या (समीक्षा प्रक्रिया) अधिनियम” द्वारा विनियमित किया जाता है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिशानिर्देशों में हाल ही में क्या परिवर्तन किये गए?
- वर्ष 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 के इच्छामृत्यु दिशानिर्देशोंको संशोधित कर दिया, ताकि गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिये निष्क्रिय इच्छामृत्यु प्रदान करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी तथा इस अधिकार को लागू करने के लिये असाध्य रूप से बीमार रोगियों के लिये दिशानिर्देश निर्धारित किये।
- सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों में संशोधन:
- लिविंग विल का सत्यापन: न्यायालय ने लिविंग विल (एक दस्तावेज़ जिसमें कोई व्यक्ति यह बताता है कि वह भविष्य में गंभीर बीमारी की हालत में किस तरह का इलाज कराना चाहता है) पर न्यायिक मजिस्ट्रेट के सत्यापन की आवश्यकता को हटा दिया है। अब, नोटरी या राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापन ही पर्याप्त है, जिससे व्यक्तियों के लिये अपने जीवन को समाप्त करने के विकल्प को व्यक्त करने की प्रक्रिया सरल हो गई है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य डिजिटल रिकॉर्ड के साथ एकीकरण: पहले, लिविंग विल को ज़िला न्यायालय द्वारा रखा जाता था। संशोधित दिशा-निर्देशों में यह अनिवार्य किया गया है कि यह दस्तावेज़ राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड का हिस्सा हों। इससे देश भर के अस्पतालों और डॉक्टरों के लिये सरल पहुँच सुनिश्चित होती है, जिससे समय पर निर्णय लेने में सुविधा होती है।
- इच्छामृत्यु से इनकार के लिये अपील प्रक्रिया: यदि किसी अस्पताल का मेडिकल बोर्ड जीवन रक्षक प्रणाली हटाने की अनुमति देने से इनकार करता है, तो रोगी/मरीज़ का परिवार संबंधित उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। इसके बाद न्यायालय मामले का पुनर्मूल्यांकन करने हेतु एक नया मेडिकल बोर्ड गठित करेगा, ताकि मामले की गहन और न्यायपूर्ण समीक्षा सुनिश्चित की जा सके।
इच्छामृत्यु से जुड़े नैतिक पहलू क्या हैं?
इसके सामाजिक प्रभाव में चिकित्सा पेशेवरों की भूमिका, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा इच्छामृत्यु की मांग के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करने के लिये उपशामक देखभाल तथा मनोवैज्ञानिक सहायता तक समान पहुँच की आवश्यकता से संबंधित प्रश्न शामिल हैं।
स्वायत्तता और सूचित सहमति: इच्छामृत्यु में व्यक्तिगत स्वायत्तता का सम्मान करना शामिल है, जिसका अर्थ है कि लोगों को अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिये, विशेष रूप से यदि वे मानसिक रूप से सक्षम हैं तो पीड़ा को समाप्त करने का अधिकार होना चाहिये।
इसके लिये सूचित सहमति की भी आवश्यकता होती है, जिसमें व्यक्ति को अपनी स्थिति, इच्छामृत्यु की प्रक्रिया और इसके परिणामों को पूरी तरह से समझना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उस पर दबाव नहीं डाला जा रहा है या उसके साथ किसी भी प्रकार का छल-कपट नहीं किया जा रहा है।
जीवन की गुणवत्ता बनाम जीवन की शुचिता: इच्छामृत्यु पर विमर्श प्रायः जीवन की गुणवत्ता बनाम जीवन की शुचिता पर केंद्रित होता है। जीवन की गुणवत्ता में यह तर्क दिया जाता है कि कि पीड़ा को समाप्त करना और गंभीर बीमारी के दौरान अपनी गरिमा को संरक्षित करना नैतिक हो सकता है जबकि जीवन की शुचिता या पवित्रता अक्सर धार्मिक या दार्शनिक मान्यताओं को दर्शाती है जिसके तहत यह माना जाता है कि जीवन आंतरिक रूप से मूल्यवान है और इसे समय से पहले समाप्त नहीं किया जाना चाहिये।
विधिक और सामाजिक निहितार्थ: इच्छामृत्यु से संबंधित विधिक रूपरेखा क्षेत्राधिकार के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है, जो जीवन के अंत से जुड़े मुद्दों पर विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोणों और नैतिक विमर्शों को दर्शाती है।
पूर्व में बरी और पूर्व में दोषी: सिद्धांत
ये दोनों सिद्धांत **दोहरे खतरे (Double Jeopardy)** के सिद्धांत से जुड़े हैं। दोहरे खतरे का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित और दंडित नहीं किया जा सकता।
**पूर्व में बरी (Former Acquittal):** यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए पहले ही बरी कर दिया गया है (अर्थात न्यायालय ने उसे निर्दोष पाया है), तो उसे उसी अपराध के लिए दोबारा अभियोजित नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह है कि राज्य (State) को एक ही व्यक्ति को बार-बार एक ही अपराध के लिए अदालती कार्यवाही में नहीं घसीटना चाहिए, क्योंकि इससे व्यक्ति को अनावश्यक मानसिक और वित्तीय पीड़ा होगी।
**पूर्व में दोषी (Former Conviction):** यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है (अर्थात न्यायालय ने उसे दोषी पाया है), तो उसे उसी अपराध के लिए दोबारा अभियोजित नहीं किया जा सकता। यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को उसके अपराध के लिए एक बार दंडित होने के बाद, उसे उसी अपराध के लिए बार-बार दंडित न किया जाए।
**निष्पक्ष विचारण को सुनिश्चित करने में भूमिका**
ये दोनों सिद्धांत एक निष्पक्ष विचारण सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
**मनमानी से सुरक्षा:** ये सिद्धांत राज्य को मनमाने ढंग से किसी व्यक्ति को बार-बार अभियोजित करने से रोकते हैं। यदि ऐसा न होता, तो राज्य किसी व्यक्ति को तब तक अभियोजित करता रहता जब तक कि उसे दोषी न ठहरा लिया जाए, जो कि न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
**संसाधनों का कुशल उपयोग:** ये सिद्धांत अदालत के समय और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करते हैं। बार-बार एक ही मामले की सुनवाई करने से बचने पर, अदालतें अन्य लंबित मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।
**मनोवैज्ञानिक सुरक्षा:** ये सिद्धांत व्यक्ति को इस भय से मुक्ति दिलाते हैं कि उसे उसी अपराध के लिए बार-बार अभियोजित किया जा सकता है। यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और शांति को बनाए रखने में मदद करता है।
**न्याय पर विश्वास:** जब लोगों को यह विश्वास होता है कि न्याय प्रणाली उन्हें दोहरे खतरे से बचाती है, तो न्याय प्रणाली में उनका विश्वास बढ़ता है।
**निष्कर्ष**
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में “पूर्व में बरी” और “पूर्व में दोषी” के सिद्धांत न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित हैं। ये सिद्धांत दोहरे खतरे से सुरक्षा प्रदान करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को एक निष्पक्ष विचारण का अधिकार है।