उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 (Uttar Pradesh Revenue Code, 2006) प्रदेश की भूमि और राजस्व संबंधी व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने हेतु पारित एक समेकित कानून है। यह संहिता पुराने राजस्व कानूनों और नियमों का संशोधन तथा समायोजन करते हुए राजस्व प्रशासन, निजी और सरकारी भूमि के अधिकार, रिकार्ड की व्यवस्था, कर–उपार्जन व वसूलियाँ, नक्सल एवं सीमांत मामलों के निपटान आदि विषयों को नियंत्रित करती है
1. उद्देश्य और क्षेत्रीय प्रभाव
– उद्देश्य: राजस्व प्रशासन को सुव्यवस्थित करना, भूमि रिकॉर्ड का ठीक ढंग से रख-रखाव, भूमि अधिकारों की सुरक्षा, राजस्व वसूली की स्पष्ट प्रक्रिया स्थापित करना, तथा विवादों के शीघ्र निपटान की व्यवस्था करना।
– क्षेत्रीय प्रभाव: संहिता उत्तर प्रदेश राज्य के समस्त भू-क्षेत्र पर लागू होती है; कुछ विशिष्ट प्रावधान केन्द्र या अन्य कानूनों के अंतर्गत अलग हो सकते हैं।
2. परिभाषाएँ और महत्वपूर्ण शब्द
– संहिता में भूमि, मालिक, जमींदार, पट्टा, रैवाल (revenue records), नाप-जोख, कृषि तथा गैर-कृषि भूमि इत्यादि की परिभाषाएँ दी गई हैं।
3. भूमि रिकॉर्ड और रिकार्ड की व्यवस्था
– तहसीलवार/जिलावार रिकॉर्ड: जमाबंदी, खतौनी, नक्शे तथा अन्य रैवाल बनाए रखने का प्रावधान।
– रिकॉर्ड की अद्यतनता: नयी नाप-जोख, विभाजन, मालिकाना हक में बदलाव आदि को रिकार्ड में दर्ज करने का प्रावधान।
– महत्त्व: संपत्ति विवादों के निपटान, कराधान की स्पष्टता और भूमि अधिकारों की सुरक्षा में रिकार्ड की भूमिका
4. मालिकाना हक, पट्टा एवं अधिकार
– मालिकाना हक की मान्यता और सीमाएँ: स्वामित्व, पट्टेदारों के अधिकार, आसामी/कृषक अधिकार इत्यादि।
– पट्टा एवं पट्टों का रजिस्ट्रेशन: सरकारी और निजी पट्टों के संबंध में नियम तथा नवीनीकरण, अवधि और उल्लंघन की दशा में दंड/समाप्ति के प्रावधान।
– मुआवजे और अधिग्रहण: जब राज्य द्वारा भूमि अधिग्रहीत की जाती है तो मुआवजे की प्रक्रिया व मानदंड शामिल करने योग्य हैं।
5. कराधान और राजस्व वसूली
– भूमि कर, कृषि कर, कर छूटों व छूटकारियों का स्वरूप: किस प्रकार कर लगाया और वसूला जाता है—दरें, किश्तें, छूटें।
– वसूली की कार्यवाही: बकाया करों के लिए कार्रवाई, निलंबन, नीलामी या अनुशासित वसूली के प्रावधान।
– अपील और प्रतिवाद प्रक्रियाएँ: कर निर्धारण के विरुद्ध विवादों के निपटान हेतु अपीलीय रास्ते और समय-सीमा।
6. नाप-जोख, नक़्शे और सीमांकन
– भूमि नापने का नियम, मानक, और प्रमाणिकता: सरकारी सर्वे/नक़्शा तैयार करने के प्रावधान।
– विवादित सीमाओं के निपटान के लिए न्यायिक/राजस्व अधिकारी की भूमिका।
– रिवीजन/सुधार के उपाय जब नक्शे अथवा नाप में त्रुटियाँ हों।
7. राजस्व न्यायालय/अपील व्यवस्था और प्राधिकारी
– विभिन्न स्तर: पटवारी, तहसीलदार, जिलाधिकारी, राजस्व न्यायालय/विशेष न्यायालय व उच्चतर अपीलीय प्राधिकरण; इनके अधिकार, कार्यक्षेत्र और समय-सीमाएँ।
– आपत्तियों का निस्तारण प्रक्रिया: प्रारम्भिक सुनवाई, फैसले और पुनरावलोकन/अपील के नियम।
– संवैधानिक आधार और न्यायिक समीक्षा: जहाँ आवश्यक हो, उच्च न्यायालय/सुप्रीम कोर्ट का रिमिट लागू होता है
8. भूमि-विभाजन, अंतरण और अनुवांशिक व्यवस्थाएँ
– विभाजन के नियम: कृषि भूमि का विभाजन, अपात्रता (ineligibility) के मानदंड, विभाजन के बाद रिकार्ड में संशोधन।
– विरासत/वसीयत के नियम: उत्तराधिकारियों के अधिकार व रिकार्ड पर उनका प्रतिबिंब।
– बिक्री, उपहार और रजिस्ट्रीकरण के कागजातों का समन्वय।
9. दंड, जुर्माने और दंडात्मक प्रावधान
– गलत रेकॉर्ड बनवाने, अवैध कब्जा, कर चोरी आदि के लिये दंड और जुर्माना।
– सिविल और क्रिमिनल नतीजे: कुछ उल्लंघनों पर आपराधिक प्रक्रिया भी लागू हो सकती है
10. विशेष प्रावधान और सुधार
– सरकारी भूमि की सुरक्षा—अवैध कब्ज़े का निष्कासन और संरक्षण।
– सामाजिक हित को ध्यान में रखते हुए गरीब भूमिधारकों व अनुसूचित वर्गों के लिए संरक्षणात्मक प्रावधान।
– डिजिटलीकरण व इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड: आधुनिक प्रवृत्तियाँ (यदि संहिता/नीतियों में लागू हो)।
11. न्यायशास्त्रीय और व्यावहारिक प्रभाव (समीक्षा)
– सकारात्मक पक्ष: संहिता ने राजस्व प्रशासन में एकरूपता, स्पष्टता और पारदर्शिता लाने का प्रयास किया है; रिकॉर्ड की सुदृढ़ता से संपत्ति विवाद कम होते हैं और कर वसूली आसान बनती है।
– आलोचनात्मक बिंदु: लागू करने में प्रशासनिक अक्षमताएँ, पुरानी रिकॉर्डों का समेकन, स्थानीय प्रथाओं से टकराव, तथा प्रक्रिया के लंबा होने के कारण झंझट।
– सुझाव : प्रशिक्षण, डिजिटलीकरण, समय-सीमा का कठोर पालन, तथा जमीनी स्तर पर जागरूकता–अभियान।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 का उद्देश्य भूमि और राजस्व प्रबंधन की सुव्यवस्था है। परीक्षा उत्तर में संहिता के दायरे, भूमि रिकॉर्ड व्यवस्था, मालिकाना अधिकार, कर वसूली व अपील प्रणाली, नाप-जोख व सीमांकन, दंडात्मक प्रावधान तथा सामाजिक व प्रशासनिक प्रभावों का व्यवस्थित और तर्कसंगत वर्णन करें। उत्तर देते समय प्रावधानों का संदर्भ (धारा/अनुच्छेद) जहाँ आवश्यक हो, संक्षेप में उद्धृत करें और समापन में संतुलित समीक्षात्मक टिप्पणी दें।