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अपील क्या है? अपील के आधार कौन-कौन से हैं और राजस्व मामलों में यह पुनरीक्षण से कैसे भिन्न है? 

Posted on November 25, 2025November 25, 2025 by KRANTI KISHORE

परिचय

“अपील” और “पुनरीक्षण” (revision) किसी भी विधिक प्रणाली में न्यायिक निर्णयों पर नियंत्रण और उसके सुधार के उपाय आवश्यक होते हैं।

1. अपील (Appeal) — परिभाषा और स्वरूप

– परिभाषा: अपील वह न्यायिक उपाय है जिसके द्वारा कोई पक्ष निचली अदालत या अधिकरण के निर्णय, आदेश या निष्कर्ष को उच्च न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती देता है और उसे बदलने या रद्द करने का अनुरोध करता है। अपील का उद्देश्य तथ्यात्मक और/या कानूनी त्रुटियों का सुधार करना होता है।

– स्वरूप: अपील सामान्यतः लिखित रहती है (appeal memorandum या petition) और उच्च न्यायालय/अपील सक्षम न्यायाधिकरण पुनः सुनवाई के बाद निर्णय देता है। अपील न्यायिक अधिकार क्षेत्र (jurisdiction) और सीमाओं के अधीन होती है।

2. अपील के आधार (Grounds of Appeal)

अपील के लिये सामान्यतः निम्नलिखित आधार प्रस्तुत किए जाते हैं — इन्हें स्पष्ट, संक्षेप में तथा प्रासंगिक कानून व कण्टेक्स्ट के अनुसार लिखा जा सकता है:

– कानूनी त्रुटि (Error of law): निर्णय में विधि के गलत अनुवर्तन या लागू न करने की गलती। उदाहरण: किसी प्रावधान की गलत व्याख्या।

– तथ्यों का अनुचित आकलन (Error in appreciation of evidence / perverse finding): तथ्यात्मक निष्कर्ष का ऐसा होना जो तार्किक रूप से समर्थन न करता हो या साक्ष्य के पूरी तरह विपरीत हो (perverse finding).

– प्रक्रिया संबंधी दिक्कतें (Procedural irregularity / violation of principles of natural justice): न्यायिक/प्रशासनिक प्रक्रिया का उल्लंघन — जैसे पक्ष को न सुनना, प्रमाण न स्वीकार करना, हितों का टकराव इत्यादि।

– अधिकार क्षेत्र से बाहर फैसला (Lack/Excess of jurisdiction): त्रुटिपूर्ण अथवा बिना अधिकार के लिया गया आदेश।  

– तथ्य और कानून के मिश्रित प्रश्न (Mixed question of law and fact): स्थिति जहाँ निर्णय पर तथ्यात्मक व कानूनी दोनों तत्वों का प्रभाव हो; यह अक्सर अपील का आधार बनता है।

– प्रारम्भिक/आवश्यक तथ्यों का उपेक्षा (Non-consideration of material evidence): जो महत्वपूर्ण साक्ष्य निचली अदालत द्वारा नज़रअंदाज़ किए गए हों।

– आक्षेपणीय गलतियाँ (Illegality / irregularity): आदेश में ऐसी अवैधता जो समूचे निर्णय को प्रभावित करे।  

(नोट: विशिष्ट मामलों में क़ानून/प्रावधान अपील के वैधानिक आधार तय करते हैं; उदाहरणार्थ सिविल प्रक्रिया संहिताएँ, दंड संहिता, राजस्व क़ानून आदि विशिष्ट सीमाएँ निर्धारित कर सकती हैं।)

3. राजस्व मामलों में अपील — विशेषताएँ

राजस्व मामलों (जैसे कर, भूमि कर, संपत्ति कर आदि) में अपील की कुछ विशेष बातें होती हैं:

– धाराओं द्वारा निर्धारित अपील अधिकार: राजस्व कानूनों में सामान्यतः अपील की सीमा, समय-सीमा और आवश्यक शर्तें स्पष्ट होती हैं (उदा. राज्य-राजपत्र, आयकर अधिनियम, राज्य राजस्व कोड)।

– तथ्यात्मक प्रमाणन का महत्व: राजस्व मामलों में मूल्यांकन, कर निर्धारण आदि तथ्यात्मक आकलन पर निर्भर होते हैं — अतः तथ्यों के पुनर्मूल्यांकन का स्थान सीमित हो सकता है।

– विशेषज्ञता और नियम: कई राजस्व अधिकरणों/अदालतों के पास तकनीकी या नीतिगत मार्गदर्शन होता है; उच्च न्यायालय पर अपील में भी विशेषज्ञता का अनुपात देखना ज़रूरी है।

– संवैधानिक और विधिक प्रश्न: कराधान की वैधता, संवैधानिक दायरे और विधिक सिद्धांतों पर आधारित अपीलें आम हैं।  

4. अपील और पुनरीक्षण (Revision) में अंतर — राजस्व संदर्भ में प्रमुख भेद

– स्वभाव व उद्देश्य:

  – अपील: निचली अदालत/अधिकरण के निर्णय का व्यापक परीक्षण — तथ्यों और कानून दोनों पर पुनर्विचार। अपीलीय प्राधिकरण पूरे मामले का निरपेक्ष परीक्षण कर सकता है (यदि कानून अनुमति देता है)।

  – पुनरीक्षण: सामान्यतः उच्चतर प्राधिकरण द्वारा निचली निकाय के निर्णय/आदेश में विधि सम्मतता, अधिकार क्षेत्र, या निहित प्रक्रिया त्रुटियों की जाँच। पुनरीक्षण का उद्देश्य अधिकतर अवैधता/त्रुटि का सुधार है, न कि तथ्यात्मक पुन: सुनवाई का साधारण रूप से व्यापक परीक्षण।

– अधिकार क्षेत्र और सीमा:

  – अपील: वैधानिक प्रावधानों द्वारा निर्धारित अधिकार के आधार पर। अपील में अधिकार अधिक विस्तृत हो सकता है (उदा. तथ्यों का पुनर्मूल्यांकन) यदि कानून इजाजत दे।

  – पुनरीक्षण: अक्सर सीमित अधिकार; उच्च न्यायालय या प्रशासकीय अधिकारी केवल विधि के अनुपालन व अधिकार क्षेत्र की जाँच कर सकता है। तथ्यों पर विस्तृत पुनः परीक्षण सामान्यतः नहीं होता।

– प्रकिया और प्रमाणिकता:

  – अपील: अपीलीय न्यायाधिकरण नये प्रमाण स्वीकार करने या रिकॉर्ड पर पुनः विचार कर सकता है (कानून के अनुसार) तथा सुनवाई का अवसर दिया जाता है।

  – पुनरीक्षण: सामान्यतः नये साक्ष्य स्वीकारने का अधिकार सीमित होता है; अधिकरण केवल प्रलेख/दलीलों के आधार पर विधिक त्रुटि देखेंगा।

– उदाहरण (राजस्व संदर्भ):

  – अपील का उदाहरण: कर निर्धारण पर करदाता द्वारा सक्षम अपीलीय अधिकरण/ट्रिब्युनल में दाख़िल अपील जहाँ वह निचली कीमत, छूट या कर दर में त्रुटि पर पुनर्विचार चाहता है।

  – पुनरीक्षण का उदाहरण: उच्चतर राजस्व अधिकरण/न्यायालय द्वारा यह जाँचना कि क्या निचली रिवेन्यू अथवा ट्रिब्युनल ने प्रक्रिया का उल्लंघन किया, अधिकार-सीमाओं का उल्लंघन किया या संवैधानिक प्रश्न छोड़े गए हैं।

– प्रभाव व परिणाम:

  – अपील: निर्णय को बदलना, रद्द करना या संशोधित करना; पूर्ण पुन:निर्णय संभव।

  – पुनरीक्षण: त्रुटि पाए जाने पर आदेश को ख़ाली करना, वापस भेजना (remand) या संवैधानिक/कानूनी निर्देश देना; पर पूर्ण तथ्यात्मक पुनर्राय अक्सर सीमित।

Appeal, Land Law, अपील, उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006, पुनरीक्षण, भूमि विधि

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