G20 (ग्रुप ऑफ ट्वेंटी) विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का एक बहुपक्षीय मंच है जो आर्थिक नीति समन्वय, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की स्थिरता, वैश्विक विकास और अन्य वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा के लिए स्थापित किया गया है। यह समूह 1999 में आर्थिक संकटों और वैश्विक आर्थिक परामर्श की आवश्यकता के जवाब में बनाया गया था। आज G20 विश्व की GDP, व्यापार और आबादी का बड़ा हिस्सा प्रतिनिधित्व करता है और वैश्विक नीतिनिर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इतिहास और गठन
G20 की स्थापना 1999 में हुई थी, मुख्यतः वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों के स्तर पर नियमित बैठकों के रूप में। 2008-2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद G20 की भूमिका और दर्जा बढ़ा; तब इसे प्रमुख स्तर (समूह के नेता-देशों की शिखर बैठकों) पर विस्तारित कर दिया गया ताकि वैश्विक आर्थिक संकट से समन्वयित समाधान निकाले जा सकें। तब से G20 नीतिगत प्राथमिकताओं और वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए प्रमुख मंच बन गया है।
सदस्यता और संरचना
G20 में 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। सदस्य देश हैं: अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, और अमेरिका। यूरोपीय संघ भी एक सदस्य के रूप में भाग लेता है। सदस्यों के अलावा, G20 शिखर बैठकों में आमंत्रित अतिथि देशों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे IMF, विश्व बैंक, WTO, UN) और क्षेत्रीय संगठन भी भाग लेते हैं।
गतिविधियाँ और प्राथमिकताएँ
G20 का कार्यक्षेत्र व्यापक है — आर्थिक नीति, वित्तीय नियमन, अर्थव्यवस्था की पुनरुद्धार योजनाएँ, अंतरराष्ट्रीय कर नीतियाँ, बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता, विकास और गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा नीति, डिजिटल अर्थव्यवस्था, वैश्विक स्वास्थ्य जैसे मुद्दे। कुछ मुख्य प्राथमिकताएँ निम्न हैं:
– वैश्विक आर्थिक वृद्धि और वित्तीय स्थिरता: आर्थिक नीतियों का समन्वय और वित्तीय संकटों से बचाव के उपाय।
– विकास और समावेशन: विकासशील देशों के लिए नीति समर्थन, अवसंरचना निवेश और टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDGs) को बढ़ावा।
– अंतरराष्ट्रीय कर नियमों का सुधार: कई बार G20 ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर कराधान और कर चोरियों पर कदम उठाने के लिए पहल की है।
– जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संक्रमण: नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ तकनीक और जलवायु वित्त पर सहयोग।
– वैश्विक स्वास्थ्य: महामारी निवारण, टीकाकरण और स्वास्थ्य प्रणालियों की मजबूती।
– डिजिटल अर्थव्यवस्था और साइबर सुरक्षा: डेटा प्रवाह, डिजिटल कर, और तकनीकी नीति समन्वय।
निर्णय प्रक्रिया और प्रभाव
G20 का निर्णय कोई कानूनी बाध्यकारी शक्ति नहीं रखता; यह अधिकतर राजनीतिक सहमति और सामूहिक घोषणाओं के माध्यम से काम करता है। शिखर सम्मेलनों के बाद जारी होने वाले कम्युनिके (communiqué) और कार्ययोजना बहुमत समय विश्व नीति पर मार्गदर्शन देती है। हालाँकि निर्णय बाध्यकारी नहीं होते, परन्तु सदस्य देशों के आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव के कारण G20 के दिशानिर्देश वैश्विक नीति बनाने में मायने रखते हैं। उदाहरण के लिए 2008-09 के संकट के दौरान और बाद में बैंकिंग नियमन (बेसल III) तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय समन्वय जैसे क्षेत्रों में G20 ने जोरदार प्रभाव डाला।
G20 के लाभ और सीमाएं
लाभ:
– वैश्विक आर्थिक नेताओं को संवाद और समन्वय का मंच मिलता है।
– त्वरित संकट-प्रतिक्रिया के लिए उपयुक्त: वित्तीय संकट या वैश्विक आपात स्थिति में सामूहिक कार्रवाई को प्रोत्साहन।
– नई वैश्विक नीतियों (जैसे कर नीतियाँ, डिजिटल कर ढाँचे) पर समन्वित ढांचा प्रदान करता है।
सीमाएं:
– निर्णय बाध्यकारी नहीं होते, इसलिए व्यवहार में कार्यान्वयन सदस्य देशों पर निर्भर रहता है।
– सदस्यता सीमित होने से कुछ वैश्विक हितों या छोटे देशों की चिंताओं की उपेक्षा हो सकती है।
– राजनीतिक मतभेदों के कारण नीति एकरूपता में बाधा आती है, खासकर geopolitics के मामलों में।
भारत और G20
भारत ने G20 में सक्रिय भागीदारी निभाई है। भारतीय प्राथमिकताएँ आमतौर पर समावेशी विकास, डिजिटल अर्थव्यवस्था, सतत विकास और जलवायु कार्रवाई, और विकासशील देशों के हितों पर केन्द्रित रहती हैं। 2023 में भारत ने G20 की मेज़बानी की—इस अवसर पर वह वैश्विक अजेंडा को प्रभावित करने के लिए कई पहलें और विषयों को उठाता है, जैसे व्यापक आर्थिक सुधार, वैश्विक सार्वजनिक सामान (global public goods), और पारस्परिक सहयोग।
भविष्य की चुनौतियाँ
G20 को कई चुनौतियों का सामना करना होगा:
– पारंपरिक आर्थिक नीतियों के साथ जलवायु और पर्यावरणीय लक्ष्यों का समन्वय।
– बढ़ती असमानता और विकासशील देशों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना।
– बहुपक्षीय शासन प्रणाली को मजबूत करना जबकि राष्ट्रीय स्वार्थ प्रबल हैं।
– डिजिटल अर्थव्यवस्था में कराधान, डेटा सुरक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े नीतिगत मुद्दों का व्यवस्थित समाधान।
निष्कर्ष
G20 वैश्विक आर्थिक शासन का एक प्रभावशाली मंच है जो आर्थिक स्थिरता, विकास और वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिये देशों के बीच समन्वय पैदा करता है। जबकि इसके निर्णय कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते, इसकी राजनीतिक और आर्थिक मजबूरी के कारण इसके मार्गदर्शन का विश्व अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव रहता है। आने वाले वर्षों में G20 से अपेक्षा की जाती है कि वह समावेशी विकास, जलवायु कार्रवाई और डिजिटल रूपान्तरण जैसी जटिल चुनौतियों पर ठोस और सामंजस्यपूर्ण नीतियाँ विकसित करे।