परिचय
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की स्थापना 8 दिसम्बर 1985 को काठमांडू में हुई थी। इसके संस्थापक सदस्य देश भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालेदीव और अफ़ग़ानिस्तान हैं। अप्रैल २००७ में संघ के 14वे शिखर सम्मलेन में अफगानिस्तान इसका आठवा सदस्य बना. SAARC का मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशिया में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना है तथा क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करना है।
SAARC की संरचना एवं कार्यप्रणाली
– शिखर सम्मेलन (Summit): सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष/प्रधानमंत्रियों की बैठकें।
– मंत्रिस्तरीय सम्मेलन और मंत्रालयों के स्तर पर विभागीय समितियाँ।
– SAARC सचिवालय: काठमांडू में स्थित, समन्वय और नीतिगत अनुशंसा कार्य।
– क्षेत्रीय संस्थाएँ और परियोजनाएँ: आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न प्रतिष्ठाएँ और परियोजना पहलें।
SAARC का निर्णय-निर्माण बहुपक्षीय सहमति (consensus) के सिद्धान्त पर आधारित है, जिससे निर्णय लेना कभी-कभी जटिल होता है।
SAARC के उद्देश्य
– क्षेत्रीय सहयोग और आर्थिक समन्वय को प्रोत्साहित करना।
– सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना।
– क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
– मानव विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य सार्वजनिक नीतिगत क्षेत्रों में संयुक्त पहलें करना।
मानवाधिकार के संदर्भ में SAARC का दृष्टिकोण और सीमाएँ
– संवैधानिक अधिकारों तथा मानवाधिकारों की रक्षा SAARC के प्राथमिक कानूनी दायित्व नहीं हैं; यह एक क्षेत्रीय सहयोग मंच है जिसका मुख्य फोकस आर्थिक व विकासात्मक सहयोग पर रहा है।
– SAARC का औपचारिक मानवाधिकार चार्टर या सम्मिलित यंत्रणा नहीं है—अन्य क्षेत्रीय संगठनों (जैसे यूरोपीय संघ, अफ्रीकी संघ, ओएससीई) की तुलना में इसकी मानवाधिकार संरचना कमजोर मानी जाती है।
– निर्णयों की सहमति-आधारित प्रकृति और सदस्य देशों की आंतरिक नीतिगत विविधता के कारण सामूहिक मानवाधिकार पहलें सीमित रही हैं।
– राजनीतिक तनाव और भारत‑पाकिस्तान संबंधों में उतार‑चढ़ाव ने व्यवहारिक सहयोग और मानवाधिकार मामलوں पर ठोस कार्यवाही को प्रभावित किया है।
SAARC का मानवाधिकार क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान
1. क्षेत्रीय घोषणाएँ और कार्यक्रम:
– SAARC ने मानव विकास, महिला सशक्तिकरण, बाल विकास, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में नीतिगत कार्यक्रम और कार्ययोजनाएँ अपनाई हैं। ये पहलें प्रत्यक्ष मानवाधिकार संवर्धन (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार) को प्रभावित करती हैं।
2. तकनीकी सहयोग व क्षमतावृद्धि:
– सदस्य देशों के बीच ज्ञान-विनिमय, प्रशिक्षण और सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं का हस्तांतरण मानवाधिकार-सम्बन्धी संस्थागत क्षमता को बढ़ाता है—उदाहरण: महिला अपराध रोकथाम, बाल-कल्याण परियोजनाएँ, स्वास्थ्य कार्यक्रम।
3. मानवीय आपदा प्रबंधन और राहत सहायता:
– प्राकृतिक आपदाओं के समय SAARC के मंच पर समन्वित सहायता और संसाधन साझा करना मानवाधिकार—जीवन और स्वास्थ्य अधिकार—की रक्षा में योगदान देता है।
4. सॉफ्ट‑लॉ और मानवीय पहलें:
– SAARC के साथ जुड़े सम्मेलन और रिपोर्टें सदस्य राष्ट्रों को मानवाधिकार मानकों पर संवाद के लिए एक मंच देती हैं, जिससे नीतिगत सुधारों के लिए दबाव और सहमति बनती है।
5. सूचनात्मक और जागरूकता कार्यक्रम:
– मानवाधिकारों के प्रति क्षेत्रीय जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यशालाएँ और सम्मलेन आयोजित होते हैं, जो नागरिक समाज और सरकारी संस्थाओं के बीच संवाद को प्रोत्साहित करते हैं।
कमियाँ और सुधार के सुझाव कमियाँ:
– कोई बाध्यकारी मानवाधिकार चार्टर या निगरानी प्रणाली का अभाव।
– निर्णयों में सहमति की आवश्यकता के कारण प्रभावी और शीघ्र कदम उठाना कठिन।
– सदस्य राष्ट्रों के आंतरिक अधिकारों के प्रति असमान प्रतिबद्धता तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी।
– मानवाधिकार उल्लंघनों पर आलोचनात्मक सार्वजनिक रिपोर्टिंग और प्रवर्तन के उपायों की कमी।
सुधार के सुझाव:
– SAARC मानवाधिकार डिविजन या आयोग की स्थापना: एक स्वतंत्र या अर्ध‑स्वतंत्र मानवाधिकार निकाय जो सदस्य देशों में मानवाधिकार स्थिति की निगरानी, परामर्श और रिपोर्टिंग कर सके।
– बाध्यकारी नहीं तो कम से कम अनुगामी (peer review) व्यवस्था अपनाना—उदा. राष्ट्रीय मानवाधिकारों की नियमित समीक्षा और सुधारात्मक सुझाव।
– मानवाधिकारों से संबंधित कानूनी मानकों के अनुपालन हेतु सदस्य देशों के लिए प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता बढ़ाना।
– नागरिक समाज, मानवाधिकार संस्थाओं और विश्वविद्यालयों को अधिक समावेश करना ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़े।
– आपदा प्रबंधन और प्रवासन, बाल अधिकार व लैंगिक हिंसा जैसे विशिष्ट मुद्दों पर क्षेत्रीय प्रोटोकॉल विकसित करना।
निष्कर्ष
SAARC दक्षिण एशिया में सहयोग का एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय मंच है, परंतु इसकी संरचना और निर्णय‑प्रणाली के कारण मानवाधिकारों के क्षेत्र में इसका प्रभाव सीमित रहा है। हालाँकि SAARC ने मानव विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रीय कार्यक्रमों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से मानवाधिकारों के संरक्षण में योगदान दिया है। LLB परीक्षा के उत्तर में यह रेखांकित करना आवश्यक है कि SAARC का मानवाधिकार क्षेत्र में सशक्त योगदान पाने के लिए बाध्यकारी तंत्रों, निगरानी प्रणालियों और सदस्य देशों की राजनीतिक इच्छाशक्ति को मजबूत करना अनिवार्य है। सुधारात्मक कदमों के लागू होने पर SAARC दक्षिण एशियाई मानवाधिकार मानकों के उन्नयन में अधिक सार्थक भूमिका निभा सकता है।