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पर्यावरण सुरक्षा और पारिस्थिकी तंत्र 

Posted on December 18, 2025December 18, 2025 by KRANTI KISHORE

पर्यावरण सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र (ईकोसिस्टम) मानव समाज, आर्थिक गतिविधियों और जैव विविधता के बीच संतुलन बनाए रखने का आधार हैं। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिकीकरण, नगरीकरण और असंरचित संसाधन उपयोग ने प्राकृतिक प्रणालियों पर अनपेक्षित दबाव डाला है। 

पारिस्थितिकी तंत्र क्या है?

पारिस्थितिकी तंत्र जीवों (जैविक घटक) और उनके भौतिक परिवेश (अजैविक घटक जैसे जल, मृदा, वायु, जलवायु) का परस्पर क्रिया-कलाप है। ये प्रणाली ऊर्जा के प्रवाह और पोषक तत्वों के चक्र द्वारा संचालित होती है। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र:

– जैव विविधता बनाए रखता है (प्रजातियों की संख्या और आनुवंशिक विविधता),

– पारिस्थितिक सेवाएँ प्रदान करता है (प्रदूषण नियंत्रण, जल वायु विनियमन, मृदा उर्वरता, परागण, आपदा जोखिम में कमी),

– आर्थिक और सांस्कृतिक मूल्यों का समर्थन करता है (कृषि, मत्स्य संसाधन, पर्यटन, पारंपरिक ज्ञान)।

पर्यावरण सुरक्षा का अर्थ और आवश्यकता

पर्यावरण सुरक्षा का लक्ष्य प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, प्रदूषण नियंत्रण, जैव विविधता संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थायित्व सुनिश्चित करना है। आवश्यकता के प्रमुख कारण:

– जीवन गुणवत्ता: स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल और उपजाऊ मृदा मानव स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य हैं।

– आर्थिक स्थिरता: प्राकृतिक संसाधन आर्थिक गतिविधियों की आधारशिला हैं; उनका क्षरण दीर्घकालिक नुकसान पहुंचाता है।

– आपदा प्रतिरोधकता: स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र बाढ़, सूखा, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करते हैं।

– अंतर पीढ़ी न्याय: संसाधनों का सतत प्रबंधन भविष्य की पीढ़ियों के कल्याण के लिए आवश्यक है।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रमुख जोखिम

1. वनों की कटाई और भूमि उपयोग परिवर्तन

   – प्राकृतिक आवासों की क्षति जैव विविधता ह्रास, कार्बन स्टोरेज में कमी और मिट्टी कटाव का कारण बनती है।

2. प्रदूषण (वायु, जल, मृदा)

   – औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि रसायन, नगरकचरा, प्लास्टिक प्रदूषण स्थानीय और वैश्विक स्वास्थ्य संकट उत्पन्न करते हैं।

3. जलवायु परिवर्तन

   – तापमान वृद्धि, चरम मौसम घटनाएँ, समुद्र-स्तर वृद्धि और आवासों का परिवर्तन प्रजातियों व मानव प्रणाली पर दबाव बढ़ाते हैं।

4. अतिचारण (Overexploitation)

   – मछलीपालन, वानस्पतिक संसाधनों का अति उपयोग प्रजातियों के क्षरण और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलन का कारण बनता है।

5. घुसपैठ करने वाली प्रजातियाँ

   – गैर-स्थानीय प्रजातियाँ स्थानीय जैव विविधता को प्रतिस्थापित कर पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन पैदा कर सकती हैं।

6. शहरीकरण और अवसंरचना विकास

   – भूमि विभाजन, जल चक्र पर प्रभाव और पारिस्थितिक मार्गों का टूटना सामान्य परिणाम हैं।

संरक्षण और पुनरुद्धार के उपाय

1. नीतिगत और नियामक उपाय

   – सख्त पर्यावरण मानक, प्रभाव आकलन (EIA) को कठोर बनाना, प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरणों का सशक्तिकरण और अंतर-क्षेत्रीय सहयोग जरूरी है।

2. संरक्षित क्षेत्र और बायोसरक्षित कॉरिडोर

   – नेशनल पार्क, वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी, बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट की सुरक्षा एवं कनेक्टिविटी बनाए रखने से आनुवंशिक प्रवाह और प्रजातियों की भौगोलिक गतिशीलता बनी रहती है।

3. स्थायी संसाधन प्रबंधन

   – सतत कृषि प्रथाएँ (जैसे जड़ों की विविधता, इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट), टिकाऊ मत्स्य पालन, और वन प्रबंधन अपनाने चाहिए।

4. प्रदूषण रोकथाम और रिसायक्लिंग

   – कचरा प्रबंधन, जल उपचार, औद्योगिक उद्घाटन में स्वच्छ प्रौद्योगिकी का उपयोग और प्लास्टिक कम करने के उपाय प्रभावी हैं।

5. जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई

   – उत्सर्जन घटाने के लक्ष्यों को लागू करना, नवीकरणीय ऊर्जा का संवर्धन, हरित अवसंरचना और कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन परियोजनाओं का समर्थन आवश्यक है।

6. स्थानीय और जन-आधारित पहल

   – समुदाय-आधारित संरक्षा, पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण, सस्टेनेबल रोजगार सृजन (इकोटूरिज्म, सहकारिता) से स्थानीय लोगों का समर्थन मिलता है।

7. शिक्षा, जागरूकता और अनुसंधान

   – लोगों में पर्यावरणीय साक्षरता बढ़ाना, पारिस्थितिकीय अनुसंधान और मॉनिटरिंग के लिए फंडिंग और आधुनिक तकनीक (सैटेलाइट मॉनिटरिंग, GIS, बायोमॉनिटरिंग) का प्रयोग ज़रूरी है।

कार्यक्षमता और चुनौतियाँ

– आर्थिक दबाव और विकास की तात्कालिक आवश्यकताएँ अक्सर संरक्षण के रास्ते में आती हैं। इसलिए नीति-निर्माता और उद्योग के बीच संतुलन आवश्यक है।

– जटिल पारिस्थितिक क्रियाएँ और स्थानीय–वैश्विक इंटरडेपेंडेंसी को समझना कठिन है; इसलिए अनिश्चितता के आधार पर नीतियाँ लचीली व अनुकूलनीय होनी चाहिए।

– सामाजिक असमानता: संवेदनशील समुदाय अधिक प्रभावित होते हैं—उनके हितों को संरक्षण कार्यक्रमों में इंटेग्रेट करना ज़रूरी है।

निष्कर्ष

पर्यावरण सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण केवल संरक्षणवादी दायित्व नहीं, बल्कि समग्र विकास, मानव स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिरता का अनिवार्य आधार है। प्रभावी समाधान बहु-आयामी होंगे—नीति, प्रौद्योगिकी, स्थानीय भागीदारी और वैश्विक सहयोग के संयोजन से। आज किए गए टिकाऊ विकल्प आने वाली पीढ़ियों के लिए पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरणीय सेवाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। समय रहते सक्रिय, रणनीतिक और समन्वित कदम ही स्थायी भविष्य की राह निर्धारित करेंगे।

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