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जोत के पट्टे का अर्थ और उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 के अधीन पट्टा किसे मिल सकता है — 

Posted on November 24, 2025November 25, 2025 by KRANTI KISHORE

परिचय

अधिकार वर्णन और खेती योग्य भूमि के स्वत्व-संबंधी प्रश्नों में “जोत” और “पट्टा” का अर्थ तथा पट्टा किसे दिया जा सकता है—यह समझना महत्त्वपूर्ण है। 

1. जोत का अर्थ

– सामान्य अर्थ: जोत से आशय सामान्यतः खेत की वह भागी भूमि है जिसे व्यक्तिगत रूप से जोता गया हो; यानी जो एक कृषक द्वारा जोताई (हल चलाकर) गई और जिस पर खेती की जाती है।

– तकनीकी/कानूनी परिप्रेक्ष्य: राजस्व संदर्भ में जोत उस छोटे-छोटे पट्टे/खेत के खाता/खसरा में अंकित हिस्से को भी कहा जा सकता है जिसे एक कृषक अपने उत्तम साधनों से जोतता/उपयोग करता है। अनेक न्यायाधिकरणों में “जोत” को वास्तविक कृषि-श्रम, बुआई, फसल आदि से जोड़ा गया है।

2. पट्टा (lease/tenant-right) का सामान्य अर्थ

– पट्टा वह राजस्व-आधारित अधिकार है जिससे किसी व्यक्ति को सरकारी/भूमि-स्वामी भूमि पर खेती करने का अधिकार दिया जाता है। इसमें भूमि के उपयोग, कर/रकबा, अवधि और शर्तें शामिल होती हैं।

– उत्तर प्रदेश के संदर्भ में पट्टा मतलव राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज वह अधिकार जो पट्टेदार को प्राप्त होता है—उदा. खेती करने का अधिकार, किराया/ब्याज के बदले में भूमि का उपयोग।

3. उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 — प्रासंगिक 

– उद्देश्य: संहिता भूमिसंपत्ति के प्रबंधन, रिकॉर्ड-कीपिंग, पट्टों का आवंटन और भूमि अधिग्रहण/चरित्र निर्धारण आदि को विनियमित करती है।

– पट्टा किसे दिया जाएगा: पारंपरिक रूप से पट्टा उस व्यक्ति को दिया जाता है जो वास्तविक रूप से जमीन की जोत कर रहा हो, यानी वास्तविक खेती करने वाला कृषक या जोतदार। संहिता और संबंधित नियमों के अनुसार, पट्टा/जोतदार का हक उन्हीं को दिया जाता है जो भूमि पर निरंतर और वास्तविक उपयुक्त खेती करते हैं तथा जिनका नाम राजस्व रिकॉर्ड/खाता खसरा में दर्ज है या किया जा सकता है।

– जोत का उठाना (कौन उठा सकता है): आम तौर पर जोत पर पट्टा उसी व्यक्ति या परिवार को मिलेगा जो जमीन पर सीधे खेती करता हो — अर्थात् जोतदार/कृषक जिसे भूमि का वास्तविक उपयोगकर्ता माना जाए। गैर-हाजिर या केवल निवेश उद्देश्य से रखे गए मालिकों को नहीं, बल्कि वास्तविक कृषि-परिसंपन्न जोतदारों को प्राथमिकता दी जाती है।

4. न्यायिक और प्रशासनिक मर्म

– न्यायालयों के फैसलों तथा प्रशासनिक प्रथाओं में यह सिद्धांत मजबूत है कि भूमि के पट्टे का उद्देश्य वास्तविक कृषक का संरक्षण है। इसलिए, यदि वास्तविक जोतदार किसी बाहरी व्यक्ति/सरकारी व्यवस्था के कारण पट्टा न पा रहा हो, तो वह चुनौती दे सकता है।

– प्राथमिक शर्तें: जोत का वास्तविक होना — सक्रिय कृषि क्रिया (हल चलाना, बुआई, कटाई), नियमित उपयोग, तथा राजस्व रिकॉर्ड में या अन्य दस्तावेजों से इसका समर्थन।

– परिभाषा: जोत वह कृषि-भाग है जिसे कृषक द्वारा जोता गया हो; पट्टा वह अधिकार है जो किसी को भूमि उपयोग/कृषि हेतु दिया जाता है।  

– कानूनी आधार: उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के अंतर्गत पट्टा मुख्यतः उसी को दिया जाता है जो जमीन का वास्तविक जोतदार/कृषि-उपयोगकर्ता है। संहिता का उद्देश्य भूमि के वास्तविक उपयोगकर्ता को संरक्षण देना और दुरुपयोग/दलालियों को रोकना है।  

– कौन उठा सकता है: जोत पर अपना पट्टा वही उठा सकता है जो वास्तविक रूप से जमीन जोतता हो—अर्थात जोतदार/कृषक। यदि कोई बाहरी व्यक्ति केवल निवेश या किराये पर ले रहा हो पर वास्तविक खेती नहीं करता, तो उसे प्राथमिकता नहीं मिलती। प्रशासनिक रिकॉर्ड और प्रासंगिक दस्तावेज (खसरा, खाता, गवाह) यह प्रमाणित करेंगे कि कौन वास्तविक जोतदार है।  

– निष्कर्ष: यह स्पष्ट कर दें कि पट्टा का अधिकार वास्तविक जोतदार/कृषक को प्राप्त होता है, और यदि विवाद हो तो राजस्व रिकॉर्ड व साक्ष्यों के आधार पर शासन/न्यायालय निर्णय करेगा।

समाप्ति

संक्षेप में, जोत वास्तविक कृषि-उपयोग को दर्शाता है और उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के अनुरूप पट्टा उसी को दिया जाता है जो वास्तविक तौर पर जमीन जोतता/कृषि करता है।

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